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पंजाब विधानसभा चुनाव के पास आते-आते वहां से शराब की धरपकड़ तेज हो गई है. पंजाब में चुनाव हो और शराब का दौर ना चले ऐसा हो ही नहीं सकता. पंजाबियों को मस्तमौला माना जाता है. कहते हैं ठेठ पंजाबी शराब पीने के मामले में काफी खुले होते हैं और इस बात का नेता अच्छी तरह से फायदा उठाते हैं. इस विधानसभा चुनावों में भी नेता और विधायक वोटरों को शराब का लालच देकर वोट हड़पने की तैयारी में हैं.
चुनावी खुमार चढ़ते ही पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में चोरी छिपे जहाज उतरने लगे हैं. चुनाव आयोग की सख्ती से इस पर अंकुश तो लगा है लेकिन सालों से पंजाब के ग्रामीण मतदाताओं को लुभाने के लिए उम्मीदवारों का यह हथियार इस बार भी खूब इस्तेमाल हो रहा है.
पंजाब में चुनावी माहौल में जहाज उतरने का मतलब है देशी शराब का मतदाताओं के बीच पहुंचना. चुनाव आयोग ने इस बार काफी सख्ती की हुई है जिससे इस बार चोरी छिपे रात के अंधेरे में जहाज उतर रहे हैं. जहाज उतारने वालों में कोई एक दल शामिल नहीं है, बल्कि सभी दलों के उम्मीदवार इस काम में लगे हुए हैं. काफी शराब पकड़ी भी जा रही है.
चुनाव के दौरान शराब बांटना कोई नई बात नहीं है. लेकिन यूपी और पंजाब इसका गढ़ माने जाते हैं. तमाम नकेल के बावजूद इन दोनों राज्यों में चुनाव के दौरान लगभग हर विधायक पूरी कोशिश में होता है कि वह अपने इलाके में शराब बंटवाए. इस काम के लिए स्थानीय लोगों की ही मदद ली जाती है. मतदाताओं को शराब का लालच देकर उनसे वोट मांगे जाते हैं. अधिकतर लोग चन्द दिनों की मुफ्त शराब से इतने खुश हो जाते हैं कि अपने अमूल्य वोट को गंदे नेताओं को देकर उन्हें पांच साल तक खून चूसने का अधिकार दे देते हैं.
लोगों के अंदर जागरुकता की कमी की वजह से ही लोग अपने अमूल्य वोट को चन्द पैसों की शराब के ऊपर कुर्बान कर देते हैं. यह लोग अपना तो नुकसान करते ही हैं साथ ही उन लोगों की भी जिंदगी का सौदा कर देते हैं जो क्षेत्र में सुशासन चाहते हैं. वोट और शराब का यह मेल लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है लेकिन यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि यह लाल पानी आज चुनावी माहौल में एक अहम रोल अदा करता है.
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