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उत्तर प्रदेश में चुनावी नतीजे कल आने वाले हैं. नतीजों से एक दिन पहले इस बात की चर्चाएं ज्यादा हो गई हैं कि आखिर इस बार उत्तर प्रदेश की गद्दी पर कौन बैठेगा? हम सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश भारत की राजनीति में अहम स्थान रखता है. यह देश का सबसे बड़ा विधानसभा राज्य है. कहावत है कि दिल्ली की कुर्सी का रास्ता लखनऊ के रास्ते होकर ही गुजरता है. इस अतिमहत्वपूर्ण सीट पर कब्जा करने के लिए हर पार्टी अपना पूरा जोर लगाने को तैयार रहती है. इस सीट की यह अहमियत है कि यहां देश के भावी प्रधानमंत्री कहे जाने वाले राहुल गांधी चुनावी स्टंट का कोई मौका नहीं छोड़ते. देश के युवराज कहे जाने वाले राहुल यहां की धूल-मिट्टी को यूं ही अपने सर पर नहीं लगाते, फाइव स्टार पार्टियों को छोड़ राहुल बाबा यूं ही किसी दलित के घर भोजन करने नहीं बैठ जाते. इस राज्य ने बरसों से देश की राजनीति में अपना छाप छोड़ा है और छोड़ता रहेगा.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का आखिरी दौर खत्म होने के साथ ही सभी दल अपनी-अपनी सरकार बनाने के दावे कर रहे हैं. लेकिन सरकार किसकी बनेगी, यह तो छह मार्च को ही तय हो पाएगा. बहरहाल, राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो उत्तर प्रदेश एक बार फिर राजनीतिक गठबंधन की प्रयोगशाला बनने की ओर अग्रसर है.
कहते हैं कि सियासत में कोई किसी का स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता है. सब अपने फायदे की बात देखते हैं. चुनाव से पहले समझौता किसी और से होता है और बाद में वे किसी और के पाले में खडे़ होते दिखाई देते है. इस बार चुनाव से पहले केवल कांग्रेस ने ही राष्ट्रीय लोक दल के साथ समझौता किया है. उसका इतिहास भी हालांकि अवसरवादी ही रहा है.
इसके अलावा दो अन्य प्रमुख दलों बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के नेता भी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के दावे कर रहे हैं. साथ ही यह भी कह रहे हैं कि यदि पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो वे विपक्ष में बैठेंगे.
इस बात की प्रबल संभावना है कि किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा और एक बार फिर जोड़-तोड़ की राजनीति देखने को मिलेगी. कहा तो यह भी कहा जा रहा है कि मुलायम सिंह की सरकार बनेगी और कांग्रेस उन्हें समर्थन देगी. अगर समर्थन की स्थिति पैदा होती है तो कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व मंत्रिमंडल में भागीदारी भी चाहेगा.
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