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अखिलेश यादव : एक नजर यूपी के भावी मुख्यमंत्री पर

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Profile of Akhilesh Yadav

बेदाग छवि, मृदुभाषी, प्रगतिशील सोच और युवा मन अखिलेश यादव की इन्हीं खासियत ने सपा की तस्वीर बदल कर रख दी है. कहने को तो अखिलेश को उत्तर प्रदेश की गद्दी विरासत में मिली है लेकिन इसके पीछे जो मेहनत अखिलेश ने की है वह भी किसी से छुपी नहीं है. एक ऐसी पार्टी को जीत का सेहरा पहनाना जिसे एक साल पहले कोई उत्तर प्रदेश की जंग का हिस्सा भी नहीं मान रहा था वाकई गजब की बात है.


Akhilesh yadavसबको उम्मीद है कि अखिलेश यादव के राज में सपाराज “गुण्डाराज” बनने से बचेगा और राज्य में खुशहाली आएगी. कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि अगर समीकरण और ठोस कार्यक्रम के साथ सही दिशा में अखिलेश ने कदम बढ़ाए तो विकास की लहर गुजरात और बिहार की तरह यूपी में भी बहेगी. हालांकि यह सिर्फ अनुमान है पर इस युवा नेता के लिए कुछ भी नामुमकिन कहना सही नहीं लगता.


उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के सीएम बनने जा रहे अखिलेश की उम्र 38 साल है. 15 मार्च को जब वह मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे, उस रोज वह 38 साल आठ महीने और 14 दिन के होंगे. अखिलेश यादव की जन्म तिथि एक जुलाई 1973 है. मायावती जब पहली बार उप्र की मुख्यमंत्री बनी थीं तो उनकी उम्र 39 साल चार महीने और 18 दिन थी.


Akhilesh-wifeFamily of Akhilesh Yadav

अखिलेश यादव की साफ छवि के पीछे एक वजह उनका पारिवारिक होना भी माना जाता है. अपने पिता के सबसे करीब होने के अलावा अखिलेश एक अच्छे पति और पिता भी हैं. अखिलेश यादव की बीवी का नाम डिंपल है. दोनों की शादी को करीब 12 साल हो चुके हैं. आज दोनों के तीन बच्चे हैं – अदिति, टीना और अर्जुन.


इंजीनियरिंग में डिग्री ले चुके अखिलेश को उत्तरप्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर समाजवादी पार्टी का प्रादेशिक अध्यक्ष बनाया गया. पार्टी की कमान संभालते ही उन्होंने तेज गति से अपने काम शुरू कर दिए. आइए एक नजर डालें आखिर कैसे सफल हुए अखिलेश यादव:


यूथ आईकन: इस विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव यूथ आईकान बनकर उभरे. छात्रों को लैपटाप व टैबलेट देने के वादे ने छात्रों और युवाओं के बीच अखिलेश यादव को ‘हीरो’ बना दिया. युवाओं को अपने साथ मिलाने के लिए टेबलेट, लैपटॉप और बेरोजगारी भत्ते जैसे लुभावने वादे घोषणापत्र में शामिल करने का विचार अखिलेश का ही था. अखिलेश ने 2007 में सपा की करारी हार से सबक लिया और चुनाव की तारीख घोषित होने से पहले वे आधे उत्तरप्रदेश का दौरा कर चुके थे.


साफ और बेदाग छवि: यूं तो उत्तर प्रदेश की जनता को दागी और बाहुबली नेताओं की आदत है पर इनके बीच अखिलेश यादव जैसे साफ छवि के नेता ने अपना असर सबसे ज्यादा छोड़ा.


साफ-सुथरी छवि, सहज अंदाज और डीपी यादव जैसे माफियाओं को पार्टी में शामिल न करने जैसे कुछ फैसलों ने उन्हें जनता का हीरो बना दिया. ऊपर से पढ़े-लिखे लोगों को टिकट देकर उन्होंने नहले पर दहला खेला.


टीम का मिला सहयोग

अखिलेश यादव ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. वह अच्छी तरह जानते हैं कि अकेले काम करने से यूपी जैसे बड़े राज्य में कोई खास फायदा नहीं होगा इसीलिए उन्होंने एक बेहतरीन टीम चुनी जिसमें अधिकतर चेहरे उनकी तरह ही नए और युवा थे. रेडियो जॉकी से लेकर प्रोफेसर तक को अपनी कोर टीम में जगह देकर उन्होंने अपनी जीत को सुनिश्चित किया.


आनंद भदौरिया, संजय लाठर, नावेद सिद्दीकी, अभिषेक मिश्र और सुनील यादव ‘साजन’ जैसे उच्च शिक्षा प्राप्त और कर्मठ लोगों को अपने साथ मिलाकर उन्होंने जनता को अपने शासन में सुशासन लाने का पैगाम दिया जिसे जनता ने कबूल भी किया. अब देखना यह है कि क्या अखिलेश यादव जनता की कसौटी पर खरे उतरते हैं या जल्द ही अखिलेश यादव का कोई दूसरा चेहरा लोगों के सामने आएगा जिसकी दबी जुबां में सब चर्चा कर रहे हैं.


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